Tuesday 13 September 2011

पैसा...पैसा...पैसा

पैसा बड़ा या इन्सान 
पैसा बड़ा या भगवान
पैसा जरूरी या आराम
क्या पैसा बनाये शैतान
क्या पैसे के बिना नहीं कुछ भी संभव
क्या है कोई ऐसा जिसे नहीं पैसे की जरूरत
पैसे के बिना क्या कर सकते है आप
पैसे के बिना क्या चल सकते है आप
क्या रिश्तों में है पैसे की गर्मी
क्या पैसों में बिकती है मर्यादा, बेशर्मी
नाराजगी बिकती है पैसों में, प्यार भी बिकता है
सलाह बिकती पैसों में, दीदार बिकता है
कमजोर बिकता है पैसों में, होशियार बिकता है
बचपन बिकता है पैसों में जवानी बिकती है 
हर उम्र जवान होती है पैसे से, हर उम्मीद बयां होती है  
मैंने सुना है दुनिया में दूसरा खुदा पैसा है 'दोस्तों'
क्या वाकई यह सब पैसा कर सकता है
या हमारे हाथो  में आकर वो अपना रूप बदलता है
क्या यह पैसे की ताकत है या हमारे गुरुर से मिलकर वो इतना ताकतवर बन जाता है
कि एक इंसान को तो छोड़ दो सारी दुनिया को चलाता है?

Saturday 20 August 2011

"मैं"


मैं कौन हूँ मेरी पहचान क्या 
मेरा वजूद क्या मेरा जहाँन क्या
जब पहले पहल दुनिया में आई 
सबकी नजरो में अपने लिए प्यार और ख़ुशी पाई 
कोई मुझे दुलारता कोई मुझे पुचकारता 
गोद में लेकर हर कोई मुझे घंटों झुलाता
किसी के लिए परी थी मैं किसी के लिए अप्सरा 
किसी का  सपना  थी मै किसी की जीने की वजह 
बचपन बीता और मै योवन की दहलीज़ पर आ खड़ी हुई 
वक़्त बदल रहा  था उमंगे जवान हो रही  थी
मै बचपन की स्मृतियों को लिए आगे बढ़ रही थी 
अचानक बढ़ते कदम रुक गए थे 
सभी  अपने बेगाने लगने लग गए थे 
जो बचपन में परी कहते थे अब घूर कर देखने लगे थे 
हर छुअन बदल गयी थी हर अहसास  बदल गया था 
बाहरवालों की तो छोड़ो घरवालों का नजरिया बदल गया था 
अब मै एक खूबसूरत शरीर में तब्दील हो चुकी थी 
जिस पर हर जाने अनजाने की नीयत डोलने लग गयी थी 
अब हर वक़्त कानो में एक ही जुमला गूंजता था 
"जवान हो गयी है लड़की....कुछ सोचा है "
अब मै ना बेटी थी ना परी थी ना किसी की जान थी 
बस यही पहचान रह गयी थी मेरी कि अब मै "जवान" थी
मुझे अकेले घर से निकलने कि मनाही थी 
अजनबियों से बात करने पर पाबन्दी थी
अब हर वक़्त मेरी हर हरकत पर एक नजरबंदी थी  
मुझे भी अपने साए से डर लगने लग गया था
दुनिया का चेहरा भयानक लगने लग गया था 
सब उमंगे सारे सपने चूर होने लग गए थे 
किसे जिम्मेदार मानू इस सब का , सभी  तो एक सा कह रहे थे 
सपने धूमिल हो रहे थे मनोबल कमजोर हो रहा था 
आँखों के नीचे भी काला घेरा पड़ने लगा था 
जहाँ एक तरफ मेरा योवन ढल रहा था 
वहीँ दूसरी तरफ मेरे घरवालों का मेरी शादी पर जोर बढ़ रहा था 
जैसे तैसे घरवालों ने मुझे शादी करके घर से निकाल दिया
जैसे मै उनका हिस्सा ना होकर कोई बोझ थी जिसे बस उन्होंने टाल दिया
पति को मुझ से ज्यादा पसंद मेरे साथ लाया सामान था
वो भी औरों कि तरह मेरे मन कि खूबसूरती से अनजान था
मोसम बदल रहे थे वक़्त गुजर रहा था 
जहाँ एक ओर मेरे होटों कि चुप्पी गहरा रही थी 
वही दूसरी ओर दुनियावालों का होसला बढ़ रहा था
फिर यूँही अचानक वक़्त ने करवट ली और मेरी झोली खुशियों से भर दी
उस खुशी का सबब एक नयी जिन्दगी थी
वो मेरी नन्ही बेटी के जीवन कि शुरुआत थी
मेरी बेटी का जन्म मेरे जीवन में आशा कि नयी किरण की तरह था 
उसका वजूद मेरी घुटन और खामोश जिन्दगी में एक मरहम की तरह था
वक़्त के साथ मेरी बेटी अपनी जिन्दगी का सफ़र तय करती जा रही थी
बचपन , लड़कपन को पीछे छोड़ जवानी कि तरफ कदम बढ़ा रही थी 
अचानक एक बार फिर मेरी खुशियों और सोच पर कुठाराघात हुआ 
मेरी बेटी के बढ़ते क़दमों पर घिनौनी पाबंदियों का आगाज़ हुआ
यह देख मेरा मन तिलमिला उठा और अपनी चुप्पी को तोड़ कर बाहर आ खड़ा हुआ
जो अँधेरा मुझे निगल गया था वही मेरी बच्ची के भविष्य की ओर बढ़ रहा था
लेकिन अब मेरे विद्रोह के ज्वालामुखी का लावा उस पर पड़ रहा था
दुनिया मेरे इस नए रूप को देख कर हैरान थी
शायद  मै भी अपने इस वजूद से अबतक अनजान थी
मेरे विद्रोह का असर ज़माने पर दिखने लग गया था
मेरी बेटी को आगे बढ़ने के लिए खुला आसमान मिल गया था
आज सोचती हूँ अगर औरत अपनी "मै" को कमजोर ना समझती होती
तो शायद किसी कवि को यह कविता लिखने की जरूरत ना होती 
                                    'कि'
"औरत तेरी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी"..........
                                     ??
                                                                 

Tuesday 26 April 2011

ऐसा क्यो होता है


  

ऐसा क्यो होता है  
दिल ....और दिमाग करते है मशक़्क़त 
कौन है ऐसा जो देगा इसका उत्तर
मुझ से पूँछा तू बता क्या है बेहतर 
प्यार की गाली या दोस्ती की शिद्दत
सवाल गंभीर था 
डूब गई सोच में!!
फिर बोली
ये दोनो है ज़िन्दगी की जरूरत
एक उम्र भर का साथ है और दूसरा खूबसूरत रिश्ता
दोस्ती है कच्ची मिट्टी ......
टूट -टूट कर बिखर बिखर कर .... 
नये - नये रूप रखती है .....
प्यार उस मिट्टी का पक्का रूप है!!
जिसमें खुशियाँ तो है ..... 
पर गम की भी कडी धूप है ...!!!!! 
जरा ढेस लगे तो दरार बने .....
फिर ज़िन्दगी किसी काम की नही रहती।
पल भर में ......पंगु कर देती है !! .....
पर दोनो में मिट्टी ही होती है !! 
विश्वास और भरोसे की जो दोस्ती के कच्चे घड़े को पक्के प्यार के कलश में बदलती है । 
खुशी के सागर और गम की रात देती है.... 
हर पल रंग बदलती है !!
क्या है ......ये ??
पता नही !! 
पल पल रंग बदलती .................है एक अलग सी दुनिया है ये..... 
जहाँ बस प्रीतम के ख्याल ही मन में रहते है! ..... 
बस!
वो ही सपनो में और वो ही धड़कन में......!!!
दोस्ती भी फीकी लगती है !!
सब की ज़िन्दगी बदलती है ये प्यार की गाली!!
पर ......ये भी तो दोस्ती की इबादत पर बनी होती है !
ये दो आत्माओं की पूजा है ......!
भावो की अभिव्यक्ति है .....!
जिसने बस समर्पण ही सीखा है ....!
दोस्ती ने ही खुद को मिटा कर ......... 
प्रेम के ये रथ सीचा है ......!
दोस्ती ही पूजा है । इस जैसा न कोई दूजा है ।
पर जब सब से अच्छा दोस्त प्रेम बनता ....
तो बात ही अलग होती है । 
और जब वही प्रेम ........
उस दोस्ती के मिट्टी के कलश को तोड़ देता है!!!
तो कुछ बाँकी नही रह जाता .... 
बस एक शरीर रह जाता है....
जिसमें ज़िन्दगी नही होती
वो सांस तो लेता है....... 
पर जीने की  इच्छा नही होती
उसका दिल तो धडकता है ........ 
पर खुशी नही होती
वो काम तो करता है ........
पर गति नही होती
एक पुतला बन कर रह जाता है ......
मन , आत्मा , शरीर , जज़्बात सभी कुछ तो रुक जाता है ! 
क्योकि यकीन ही नही हो पता कि जिस पर हम इतना यकीन कर चले थे !!!! 
वो नही है हमारे पास ..........
चला गया है छोड कर बीच रास्ते में! 
और पता नही ये सांस क्यों चल रही है??? 
बार बार खुद पर ही गुस्सा आता है ......
कि क्यों नही पहचान सके ....... 
उस प्यारे से चेहरे  के पीछे छुपे उस हैबन को ..................................
                                                           चारू शर्मा 

Thursday 21 April 2011

क्यूँ ????



एक दिन बैठे हुए सोचा मैंने ...........
क्यूँ निकलता है दिन, क्यूँ रात होती है 
क्यूँ भेद होता है, नर और नारी में 
क्यूँ भेद होता है, काली  और गोरी में 
क्यूँ शांति के लिए प्यार के लिए, जगह नही इस जहान में 
क्यूँ मानते है मृतक की आत्मा जाती है आसमान में
क्यूँ  ईश्वर पर है भरोसा, इन्सान पर नही 
क्यूँ हम में आप में एक शैतान है कहीं 
क्यूँ आज इस जग में मानवता है नही 
क्यूँ हर जगह हिंसा और पाशविकता है भरी 
फिर सोचती हूँ ................................
आज कि यह जीवन है ब्यर्थ 
जब हम इस जंहा को स्वर्ग बनाने में नही समर्थ 
फिर अतंत: सोचते सोचते हो जाता है अंत 
फिर नये जन्म के साथ शुरू होता है 
एक नये क्यूँ................ का जन्म ??????????????????????????????
                                                           चारू शर्मा 

Saturday 16 April 2011

"ख्याल और दिमाग"

शाम के साये में, कुछ ख्याल आये थे!
कुछ मेरे अपने थे, कुछ थोड़े पराये थे!!
दिमाग में ख्यालों की गहमागहमी थी!
मै सोना चाहती थी, पर नींद से कोसो की दूरी थी!!
तभी अचानक दिमाग में कुछ हलचल हुई!
दिमाग के द्वार पर नए ख्याल की दस्तक हुई!!
दिमाग थका था सोना चाहता था!
ख्याल नया था दिमाग में दाखिल होना चाहता था!!
दोनों बहस कर रहे थे तर्क-वितर्क चल रहा था!
एक दरवाजे पर तो दूसरा भीतर से लड़ रहा था!!
ख्याल बोला दिमाग से, माना कि तू महान है सर्व शक्तिमान है! 
पर न भूल मै ख्याल हूँ, तेरे वजूद कि शान हूँ!!
दिमाग बोला ख्याल से, तू तो एक ख्याल है, तुझे बनने में अभी साल है!
मेरे पास तो  ख्यालों का जाल है!!
बात आगे बढ़ रही थी, दोनों कि जिद चढ़ रही थी!
तभी ख्याल दिमाग को धकिया के अंदर आ गया!!
मेरी बोझिल आँखों से नींद को भगा गया!
यही तो वो ख्याल था, जिसका मुझे इंतजार था!!
दिमाग भी समझ गया, चुपके से चलने लग गया!
न अब मुझे नींद थी, न दिमाग को थकान थी!!
बस उस एक ख्याल में बाकी कि शाम थी!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
                                                               चारू शर्मा