Sunday 29 July 2012

और मेरी छत टपकने लगी



आधी रात का वक्त था | मै गहरी नीद की आगोश मे गोते लगा रही थी |  दूर कही  सपनो की दुनिया मे घूम रही थी, तभी अचानक  बाद्लो की गडगडाहट की आवाज से मेरी नीद टूट गयी | उन्नीदी आखो से दीवार घडी पर नजर डाली, रात के दो बजे का वक्त था | घडी की सुईया बडी मुस्तैदी से आगे बढ रही थी |  बाद्लो की  गरज के साथ् अब बिजली की कडक भी दिखाई दे रही थी |  खिडकी से अन्दर आती बिजली की चमक, कमरे की मध्धिम रोशनी के साथ् मिलकर किसी हारर फ़िल्म का सा माहौल बना रही थी | बेड से उतर कर मै खिडकी की तरफ़् बढ गयी | बाहर का मौसम  बहुत सुहाना हो रहा था, तेज हवाये चल रही थी, बादलो से आकाश भरा हुआ था | ऐसा  लग रहा था मानो हवाओ के आदेश पर बादल इधर से उधर चहलकदमी कर रहे हो और बीच बीच मे चमकती बिजली उन्हे रास्ता  दिखाने का काम कर रही हो | 

चारो ओर अन्धेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था |  दूर से आती झीन्गरो की आवाजे और कभी कभी गली के आवारा कुत्तो के भौकने का शोर माहौल को और भी डरावना बना रहे थे | आधी रात के वक्त सुहावना मौसम भी, कभी कभी दिल की धडकन  बढा देता है | मै अपने कमरे की खिडकी से मौसम का नजारा देख् रही थी | दूर दूर तक कही कोइ नजर नही आ रहा था, काले बादल और चमकदार बिजली जरूर अपनी मौजूदगी का अहसास दिला रहे थे | कुछ देर यू  ही देखने के बाद, मै जैसे ही वापस बेड पर जाने के लिये मुडी,  तभी तेज बारिश शुरू हो गयी मै ठिठक कर रुक् गयी, और दुबारा खिडकी पर खडे होकर बाहर का नजारा देखने लगी | 

हवा के साथ् आती बारिश की बौछाऱे बहुत अच्छी लग रही थी | मै अपनी बाहे फैला कर बारिश की बूदो को महसूस करने लगी बारिश की बूदे जब् मेरे हाथो पर गिरती तो मेरे पूरे बदन मे ठंड की सिहरन सी दौड जाती | बारिश की बौछाऱे मुझे रोमान्चित  कर रही थी और उस डरावने माहौल मे भी  मुझे स्फूर्ती का अहसास दिला रही थी | तभी अचानक मेरी तन्द्रा टूट गयी | सामने पार्क के कोने मे बनी चौकीदार की झोपडी मे लालटेन की टिमटिमाहट दिखायी देने लगी | लालटेन की रोशनी मे कुछ पऱछाईय़ा हिलती डुलती दिखायी दे रही थी | कुछ छोटे बडे साये तेज़ी से इधर उधर चहलकदमी कर रहे थे | अब मेरा पूरा ध्यान उसी तरफ़् था | कुछ देर बाद चौकीदार की पत्नी झोपड़ी से बाहर आयी और कुछ बर्तन उठाकर वापस् अन्दर चली गयी | 

फिर कुछ पलो में झोपड़ी से पानी भर भर कर बाहर फ़ेका जाने लगा | उधर बारिश भी पहले से ज्यादा जोर से बरसने लगी थी | चारो ओर बस पानी ही पानी हो रहा था |  ज़हाँ एक ओर मुझे उस बारिश की फ़ुहारे अच्‍छी लग रही थी,  वही हर पल चौकीदार की झोपड़ी की ओर देखते हुए मेरी उत्‍सुकता बढ़ रही थी, कि अब आगे क्या होगा | इसी अहसास के साथ् मैने अपने कमरे में नज़र् घुमायी तो एक सुकून सा मिला | बहुत देर तक मै यु ही खिडकी पर खडी चौकीदार कि झोपड़ी में हो रही हलचल को देखती रही । 

फिर जब् कुछ ठंडक सी महसूस होने लगी तो मै कमरे में आकर बेड पर बैठ गयी | मैने बेड पर रखी चादर को उठाकऱ अपने शरीर पर लपेट लिया और दीवार् से पीठ टिकाकर आखे मूदँकऱ कुछ देर यु ही बैठी रही | अभी मुझे ऐसे बैठे कुछ ही समय हुआ था कि तभी मेरे दाये हाथ् पर पानी की एक मोटी सी बूदँ आकर गिरी | मैने चौक कर आखें खोल कर छत की ओर देखा, तो छत से पानी टपक रहा था | पानी का  टपकना मेरे लिये अपृत्‍याशित था | मै तुरन्त फ़ुर्ती  से उठकर बाथरूम में गयी और एक खाली बाल्‍टी लाकर उसी जगह ऱख दी जहाँ से पानी टपक कर मेरे बेड पर गिर रहा था । बाल्‍टी रखकर जैसे ही मै उठी तो मेरी नज़र् खिडकी से बाहर चौकीदार की झोपड़ी पर चली गयी । अब मुझे उस तकलीफ़् का अहसास हो रहा था, जो बारिश की वजह् से उस झोपड़ी में रहने वाले लोगो को हो रही थी। अभी तक जो बूदे मुझे रोमान्चित कर रही थी, वही अब मुसीबत दिख रही थी । अनायास ही मेरे होठो पर एक मुस्कान तैर गयी ।
"और इस तरह् मेरी छत भी टपकने लगी"

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